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Fundamentals of Banking – Payment System

Fundamentals of Banking – Payment System

(For IBPS PO, RRB PO, SBI PO, IDBI JAM, and other Banking Interviews)

 

भारत में बैंकों द्वारा कई प्रकार की भुगतान प्रणालियाँ (Payment Systems) उपलब्ध कराई जाती हैं, जो ग्राहकों को सुविधाजनक, तेज़ और सुरक्षित लेन-देन की सुविधा प्रदान करती हैं, जैसे Cheque, DD, NEFT, RTGS, IMPS, AEPS और UPI इत्यादि।

यह लेख उन विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभदायक होगा, जो IBPS, SBI, RRB, IDBI आदि जैसे बैंक पीओ परीक्षाओं के interview की तैयारी कर रहे हैं।

NEFT National Electronics Fund Transfer
NEFT (National Electronics Fund Transfer) एक तरह का इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर तकनीक है जिससे एक खाते से किसी दूसरे खाते मे आसानी और सुरक्षित तरीके से पैसे ट्रान्सफर किये जा सकते हैं | ये ऑनलाइन बैंकिंग या बैंक के ब्रांच द्वारा किया जा सकता है |

  • IFSC (कोड)
  • NEFT बैच के जरिये संचालित होता है।
  • NEFT के द्वारा रकम ट्रान्सफर की कोई सीमा नहीं है।
  • NEFT के जरिए फंड का ट्रांसफर आरबीआई की तरफ से तय समयसीमा के भीतर होता है।
RTGS Real Time Gross Settlement
RTGS (Real Time Gross Settlement) एक तरह का इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर तकनीक है जिससे एक खाते से किसी दूसरे खाते में तुरंत (real time), आसानी और सुरक्षित तरीके से पैसे ट्रान्सफर किये जा सकते हैं। ये ऑनलाइन बैंकिंग या बैंक के ब्रांच द्वारा किया जा सकता है।

  • IFSC (कोड)
  • RTGS के जरिए कम से कम 2 लाख रुपए की रकम ट्रांसफर की जा सकती है।
  • RTGS ट्रांजैक्शन तत्काल सेटल हो जाते हैं।
IMPS – Immediate Payment System
IMPS (Immediate Payment System) – यह इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर सुविधा खासकर मोबाइल फ़ोन के द्वारा लोगों को वास्तविक समय (real time) के आधार पर रूपये भेजने और प्राप्त करने में मदद करता है। मोबाइल फ़ोन के अलावा इंटरनेट बैंकिंग की मदद से इंटर-बैंक लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है।

  • धन के त्वरित हस्तांतरण के लिए सबसे अच्छे तरीकों में से एक है।
  • यह छुट्टयों सहित 24×7 और 365 दिन उपलब्ध है।
  • IMPS का उपयोग करके एक दिन में आप 2 लाख रुपए तक ही भेज सकते हैं।
UPI Unified Payment System
UPI (Unified Payments Interface) भारत में डिजिटल भुगतान (Digital Payment) का एक अत्याधुनिक और सुरक्षित प्लेटफॉर्म है, जिसे राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI – National Payments Corporation of India) द्वारा विकसित किया गया है। यह प्रणाली मोबाइल नंबर और वर्चुअल पेमेंट एड्रेस (VPA) के माध्यम से तत्काल बैंक-से-बैंक धन हस्तांतरण (Fund Transfer) की सुविधा प्रदान करती है।
AEPS Aadhaar Enabled Payment System
AEPS एक डिजिटल भुगतान प्रणाली है, जो UIDAI (Unique Identification Authority of India) द्वारा जारी आधार कार्ड के माध्यम से बैंकिंग लेन-देन करने की सुविधा प्रदान करती है। इस सेवा को NPCI (National Payments Corporation of India) द्वारा विकसित किया गया है। AEPS का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं को आसान और सुलभ बनाना है, जहाँ पारंपरिक बैंकिंग सुविधाएँ सीमित होती हैं। AEPS के माध्यम से केवल आधार नंबर और बायोमेट्रिक (फिंगरप्रिंट/आईरिस स्कैन) से लेन-देन कर सकते हैं
GLOBAL PAYMENT NETWORK (VISA, Master Card, RuPay)
VISA, MasterCard और RuPay प्रमुख वैश्विक भुगतान नेटवर्क (Global Payment Networks) हैं जो डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड के माध्यम से लेन-देन की सुविधा प्रदान करते हैं। ये कंपनियां खुद पैसा उधार नहीं देतीं या बैंकिंग सेवाएं प्रदान नहीं करतीं, बल्कि बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों को उनके नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति देती हैं ताकि कार्डधारकों के लेन-देन को सुरक्षित और सुगम बनाया जा सके। ये नेटवर्क ग्राहकों को धोखाधड़ी से सुरक्षा भी प्रदान करते हैं, जैसे अस्वीकृत या अनधिकृत लेन-देन को रोकना। VISA, RuPay और MasterCard के ब्रांड से जुड़े कार्ड (जैसे डेबिट/क्रेडिट कार्ड) ग्राहकों को जारी किए जाते हैं।

ये कंपनियां बैंकों को उन्नत तकनीकी सुविधाएं प्रदान करती हैं, जैसे टोकनाइजेशन (Tokenization) और संपर्क रहित भुगतान (Contactless Payments)। इन कार्ड्स का उपयोग POS मशीन, ऑनलाइन शॉपिंग, और ATM में आसानी से किया जा सकता है।

उदाहरण :- यदि आप किसी दुकान पर अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं, तो VISA या MasterCard यह सुनिश्चित करता है कि पैसा आपके बैंक खाते से व्यापारी के बैंक खाते में ट्रांसफर हो।

PLASTIC MONEY
प्लास्टिक मनी” एक शब्द है जो डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, और प्रिपेड कार्ड जैसे प्लास्टिक आधारित भुगतान उपकरणों को संदर्भित करता है। इसका नाम “प्लास्टिक” शब्द से लिया गया है, क्योंकि ये कार्ड अक्सर प्लास्टिक सामग्री से बने होते हैं। इन कार्ड्स का उपयोग नकद के बजाय डिजिटल लेन-देन में किया जाता है, जैसे खरीदारी, बिल भुगतान, और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन।
PAYMENT GATEWAY
पेमेंट गेटवे (Payment Gateway) एक डिजिटल प्लेटफॉर्म या सर्विस है जो ऑनलाइन लेनदेन को सुरक्षित तरीके से पूरा करने में मदद करता है। यह ई-कॉमर्स वेबसाइटों, मोबाइल ऐप्स या किसी अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ग्राहक और व्यापारी के बीच भुगतान प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाता है।

पेमेंट गेटवे कैसे काम करता है?

1. ग्राहक द्वारा भुगतान की शुरुआत:

  • ग्राहक ई-कॉमर्स वेबसाइट या मोबाइल ऐप पर कोई प्रोडक्ट/सर्विस चुनता है।
  • भुगतान करने के लिए डेबिट/क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग, यूपीआई, या वॉलेट जैसे विकल्प का चयन करता है।

2. भुगतान की जानकारी का सुरक्षित संग्रह:

  • ग्राहक अपनी भुगतान जानकारी (जैसे कार्ड नंबर, CVV, एक्सपायरी डेट) भरता है।
  • पेमेंट गेटवे इस जानकारी को एन्क्रिप्ट करता है ताकि यह सुरक्षित रहे और धोखाधड़ी का खतरा न हो।

3. जानकारी को प्रोसेस करना:

  • पेमेंट गेटवे ग्राहक की जानकारी को Issuer Bank (वह बैंक जिसने ग्राहक का कार्ड जारी किया है) और Acquirer Bank (वह बैंक जो व्यापारी का खाता होस्ट करता है) के बीच प्रोसेस करता है।

4. भुगतान की पुष्टि:

  • Issuer Bank ग्राहक के खाते की जांच करता है:
  • क्या खाते में पर्याप्त बैलेंस है?
  • क्या कार्ड विवरण सही है?
  • अगर सब कुछ सही है, तो बैंक भुगतान को स्वीकृत (Approved) कर देता है।
  • अगर कोई समस्या है (जैसे बैलेंस कम होना या कार्ड ब्लॉक होना), तो भुगतान अस्वीकृत (Declined) कर दिया जाता है।

5. लेन-देन की अनुमति:

  • पेमेंट गेटवे को बैंक से लेन-देन की स्वीकृति या अस्वीकृति का संदेश मिलता है।
  • यह संदेश व्यापारी के सिस्टम और ग्राहक दोनों को भेजा जाता है।

6. लेन-देन पूरा:

  • अगर भुगतान स्वीकृत हो जाता है, तो पेमेंट गेटवे व्यापारी को सूचना देता है।
  • ग्राहक को भुगतान सफल होने का संदेश मिलता है।
  • व्यापारी के खाते में पैसा ट्रांसफर कर दिया जाता है।
PAYMENT AGGREGATOR
पेमेंट एग्रीगेटर (Payment Aggregator) एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म है जो व्यापारियों (Merchants) को कई भुगतान विधियों (Payment Methods) को एकीकृत करने की सुविधा देता है, बिना किसी अलग-अलग बैंक या पेमेंट गेटवे के साथ सीधा संपर्क स्थापित करने की आवश्यकता। इसे मर्चेंट एग्रीगेटर भी कहा जाता है।

 

समझने के लिए एक उदाहरण:

  1. पेमेंट गेटवे (Payment Gateway):
    मान लीजिए ग्राहक किसी वेबसाइट पर VISA कार्ड से ₹1000 का भुगतान करता है। पेमेंट गेटवे ग्राहक के बैंक (Issuer Bank) और व्यापारी के बैंक (Acquirer Bank) के बीच ट्रांजेक्शन को प्रोसेस करता है।
  2. पेमेंट एग्रीगेटर (Payment Aggregator):

अगर व्यापारी Razorpay का उपयोग करता है, तो Razorpay पेमेंट गेटवे और बैंकों से जुड़कर व्यापारी को सभी भुगतान विधियों (डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, UPI, आदि) का उपयोग करने की सुविधा देता है।

 संक्षेप में:

  • पेमेंट गेटवे: सिर्फ लेन-देन को तकनीकी रूप से प्रोसेस करता है।
  • पेमेंट एग्रीगेटर: व्यापारियों को एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर सभी पेमेंट गेटवे और विकल्प उपलब्ध कराता है।

दोनों मिलकर डिजिटल भुगतान को सरल, तेज़ और सुरक्षित बनाते हैं। 

भारत में प्रमुख पेमेंट एग्रीगेटर्स:

1.   Razorpay

2.   Paytm for Business

3.   Instamojo

4.   Cashfree

5.   CCAvenue

भारत में प्रमुख पेमेंट गेटवे:

1.   Razorpay

2.   Paytm

3.   CCAvenue

4.   Instamojo

5.   BillDesk

CHEQUE
चेक (Cheque) एक लिखित दस्तावेज Negotiable Instrument होता है, जो एक व्यक्ति (जो चेक जारी करता है, जिसे “धारक/Drawer” कहा जाता है) द्वारा अपने बैंक (Drawee) को निर्देश देने के रूप में होता है कि वह एक निश्चित राशि दूसरे व्यक्ति (जिसे “धीन/Payee” कहा जाता है) के खाते में ट्रांसफर करे। चेक का उपयोग आमतौर पर किसी लेन-देन को भुगतान करने के लिए किया जाता है, जैसे कि किसी विक्रेता को पैसे देना या किसी सेवा के लिए भुगतान करना।

Negotiable Instrument एक कानूनी दस्तावेज (Legal Document) है, जो धारक (Holder) को यह अधिकार देता है कि वह ऑन-डिमांड (On-Demand) या किसी निश्चित तिथि पर एक निश्चित राशि (Specific Sum of Money) प्राप्त कर सके। यह दस्तावेज भुगतान की गारंटी सुनिश्चित करता है। Negotiable instrument आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को ट्रान्सफर किया जा सकता है और इस ट्रान्सफर के बाद, नया धारक उसी अधिकार का प्रयोग कर सकता है जैसा कि पहले धारक को था।

चेक, बिल ऑफ एक्सचेंज (Bill of Exchange), और पेपर पेमेंट (Promissory Notes) ऐसे ही नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स के उदाहरण हैं। (Transferability, Right to Claim and Legal Protection)

चेक के मुख्य तत्व:

  1. चेक जारी करने वाला (Drawer):
    वह व्यक्ति या संस्था जो चेक जारी करता है और बैंक को निर्देश देता है।
  2. चेक प्राप्त करने वाला (Payee):
    वह व्यक्ति या संस्था जिसे चेक से पैसे मिलते हैं।
  3. धारक का खाता (Drawer’s Account):
    वह बैंक खाता जिसमें से राशि काटी जाएगी। चेक जारी करने वाले का खाता यहां होता है।
  4. बैंक (Drawee Bank):
    वह बैंक जो चेक को कैश करता है या चेक को प्रस्तुत किए जाने पर भुगतान करता है।
  5. चेक की राशि:
    चेक में वह राशि लिखी जाती है जो बैंक को भुगतान के लिए दी जाती है।
  6. चेक पर हस्ताक्षर:
    चेक जारी करने वाले का हस्ताक्षर होता है, जो इसे वैध बनाता है।
  7. चेक की तारीख:
    चेक जारी करने की तारीख को चेक पर अंकित किया जाता है।

 चेक के प्रकार:

    1. Bearer Cheque:
      इस चेक से को कोई भी व्यक्ति नगद भुगतान ले सकता है, जो इसे प्रस्तुत करता है। इसमें प्राप्तकर्ता का नाम नहीं भी लिखा हो सकता है। उधारण, “Self” चेक।
    2. Order Cheque:
      इसमें प्राप्तकर्ता का नाम लिखा जाता है और उसके सिग्नेचर को drawer द्वारा अटैस्ट कर दिया जाता है। केवल वही व्यक्ति या संस्था चेक को कैश (नगद या अकाउंट में) कर सकती है, जिसका नाम चेक पर लिखा है।
    3. Post-dated Cheque:
      यह चेक भविष्य में एक निर्धारित तारीख को भुगतान के लिए दिया जाता है, यानी इसे उस तारीख से पहले नकद नहीं किया जा सकता।
    4. Crossed Cheque:
      इस चेक के ऊपरी बाएँ कोने पर दो पैरेलल लाइनें खींची जाती हैं, जो यह दर्शाती हैं कि चेक केवल बैंक के खाते में जमा किया जा सकता है, न कि उसे नकद लिया जा सकता है। यह सुरक्षा की दृष्टि से होता है।
    5. Stale Cheque:
      जब चेक भुगतान की अपने वैध तारीख को पार कर जाती है, तब ऐसे चेक को स्टेल चेक कहते हैं। बैंक stale चेक को ऑनर नहीं करती है।
    6. Mutilated Cheque:अगर चेक कट या फट जाए, या गंदा हो जाए, ऐसी चेक को mutilated चेक कहते हैं। बैंक mutilated चेक को ऑनर करने से माना कर सकती है।

चेक बाउंस होना तब होता है जब किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा जारी किया गया चेक बैंक द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है। यह तब होता है जब चेक पर दी गई राशि खाता धारक के खाते में उपलब्ध राशि से अधिक हो या किसी अन्य कारण से चेक को कैश या जमा नहीं किया जा सकता।

DEMAND DRAFT
डिमांड ड्राफ्ट (Demand Draft) एक प्रकार का बैंकिंग दस्तावेज है, जिसे एक बैंक द्वारा किसी ग्राहक के खाते से अन्य व्यक्ति या संस्था के नाम जारी किया जाता है। इसे एक प्रकार का प्री-पेड चेक भी माना जा सकता है, क्योंकि इसमें भुगतान पहले से ही बैंक द्वारा सुनिश्चित किया गया होता है, और इसे तुरंत किसी भी व्यक्ति को भुगतान करने के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।

डिमांड ड्राफ्ट का उपयोग मुख्य रूप से एक सुरक्षित और भरोसेमंद भुगतान विधि के रूप में किया जाता है, खासकर जब बैंकों या अन्य संस्थाओं को पैसे भेजने की आवश्यकता होती है। यह बैंक द्वारा जारी किया जाता है, और इसे प्राप्तकर्ता के बैंक में प्रस्तुत करने पर राशि का भुगतान किया जाता है।

 

डिमांड ड्राफ्ट और चेक के बीच अंतर:

विशेषता डिमांड ड्राफ्ट चेक
जारी करने वाला केवल बैंक द्वारा जारी किया जाता है व्यक्ति द्वारा जारी किया जाता है
भुगतान की गारंटी बैंक द्वारा भुगतान की गारंटी होती है बैंक को खाते में पर्याप्त राशि होने पर ही भुगतान होता है
बाउंस होने का खतरा कभी नहीं बाउंस होता है यदि खाते में राशि नहीं हो तो बाउंस हो सकता है
प्रक्रिया बैंक में जमा करने पर तुरंत भुगतान होता है चेक क्लियर होने में समय लगता है
उपयोग बड़ी रकम और अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए उपयुक्त छोटे भुगतान के लिए अधिक उपयुक्त

 

SWIFT
SWIFT (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication) एक worldwide मैसेजिंग नेटवर्क है, जिसका उपयोग बैंक और वित्तीय संस्थान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षित और कुशलतापूर्वक वित्तीय लेन-देन की जानकारी और निर्देशों का आदान-प्रदान करने के लिए करते हैं। यह प्रणाली बैंकिंग सेक्टर के लिए एक मानक बन चुकी है, जिससे अंतरराष्ट्रीय भुगतान और लेन-देन तेज़, सटीक और सुरक्षित हो जाते हैं।
IFSC – Indian Financial System Code
IFSC (Indian Financial System Code) एक unique कोड है, जो भारतीय बैंकों की शाखाओं को पहचानने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह कोड विशेष रूप से नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT), Real Time Gross Settlement (RTGS), और Immediate Payment Service (IMPS) जैसे इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग ट्रांसफर सिस्टम्स में उपयोग होता है। IFSC कोड का उद्देश्य धन के सुरक्षित और सटीक ट्रान्सफर को सुनिश्चित करना है।

IFSC का संरचना:

IFSC कोड में 11 अक्षर होते हैं, जो इस प्रकार होते हैं:

  1. पहले चार अक्षर – बैंक का कोड (जैसे, एसबीआई के लिए “SBIN”)
  2. पाँचवां अक्षर – यह हमेशा “0” होता है, और इसका कोई विशेष मतलब नहीं है। इसका उद्देश्य केवल कोड की संरचना को सही रखना है।
  3. अंतिम छह अक्षर – शाखा को पहचानने के लिए उपयोग किया जाता है, जो बैंक के विशिष्ट शाखा को पहचानते हैं।

उदाहरण:- SBIN0001234

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