IBPS PO Interview Questions

Fundamentals of Banking – Part 02

Fundamentals of Banking – Part 02

(For IBPS PO, RRB PO, SBI PO, IDBI JAM, and other Banking Interviews)

 

यह लेख उन छात्रों के लिए उपयोगी है जो बैंक पीओ, जैसे कि IBPS, RRB, SBI, IDBI आदि के इंटरव्यू की तैयारी कर रहे हैं। बैंकिंग से संबंधित कॉन्सेप्ट पर इन इंटरव्यू में कई सवाल पूछे जाते हैं। इन सवालों का उद्देश्य यह जांचना होता है कि आपने इंटरव्यू की तैयारी कितनी गंभीरता से की है और चूंकि आप बैंकिंग क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, इसलिए क्या आपके पास बैंकिंग से जुड़ी मूलभूत जानकारी है या नहीं। इसलिए, बैंकिंग टर्म्स की कॉन्सेप्ट को समझना ज़रूरी है, न कि केवल रट लेना।

KYC – Know Your Customer

Know Your Customer बैंक और फाइनेंशियल इंस्‍टीट्यूशंस अपने ग्राहक की पहचान और उसके पते को सत्‍यापित करने के लिए KYC का प्रयोग करते हैं । इसमें वित्तीय संस्थान अपने कस्टमर से सरकार द्वारा जारी कुछ प्रमाण पत्र की मांग कर ग्राहक की पहचान और पते की पुष्टि करता है |

  • बैंक KYC द्वारा अपने ग्राहक की वास्तविकता की पहचान कर पाता है
  • बैंक KYC से फ्रॉड पर रोक लगा पाता है
  • मुख्य मकसद मनी लौंडेरिंग (money laundering) को रोकना है

PASSBOOK

बैंक अपने ग्राहकों में एक छोटी-सी पुस्तिका देता है जिनमें ग्राहक के अकाउंट का विवरण होता है तथा बैंक ग्राहकों के द्वारा किये गए सारे लेन-देन (जमा, निकासी, पेमेंट, खरीदारी) का ब्यौरा प्रिंट करता है ।

DEPOSIT

बैंक के लिए “डिपॉजिट” का मतलब है वह पैसा जो लोग या बिजनेस अपने बैंक अकाउंट में रखते हैं। जब कोई व्यक्ति या संस्था अपना पैसा बैंक में जमा करती है, तो उसे “डिपॉजिट” कहा जाता है। यह डिपॉजिट बैंक के पास एक ज़िम्मेदारी (liability) होती है, और बैंक को यह पैसा वापस करना पड़ता है जब जमा करनेवाला व्यक्ति या संस्था मांगे।

डिपॉजिट दो तरह के होते हैं:

  1. डिमांड डिपॉजिट (Demand Deposit): यह वह डिपॉजिट है जो कभी भी बिना किसी नोटिस के निकाला जा सकता है, जैसे कि Savings Account और Current Account (CASA)। इसमें व्यक्ति अपना पैसा जब चाहे तब निकाल सकते हैं।
  2. टर्म डिपॉजिट (Term Deposit): इसमें जमा करनेवाला व्यक्ति अपना पैसा एक निर्धारित समय के लिए जमा करता है, जैसे Fixed Deposit (FD) या Recurring Deposit (RD)। यह डिपॉजिट एक निर्धारित समय के बाद ही निकाला जा सकता है, और इस पर ज़्यादा ब्याज मिलता है।

बैंक, डिपॉजिट्स का इस्तेमाल करके लोन और क्रेडिट फैसिलिटी प्रदान करता है और इकोनॉमी में liquidity और business transactions को बढ़ावा देता है।

LOAN

बैंक के लिए “लोन” का मतलब है वह रकम जो बैंक अपने ग्राहकों को उधार के रूप में प्रदान करता है, जिसे एक निर्धारित समय में वापस करना होता है। लोन लेने वाले व्यक्ति या संस्था को इस रकम पर ब्याज देना पड़ता है। लोन बैंक के लिए एक earning का माध्यम होता है, क्योंकि बैंक उधार दिए गए पैसों पर ब्याज लेकर अपना मुनाफा कमाता है।

लोन कई तरह के होते हैं:

  1. पर्सनल लोन: यह लोन व्यक्ति की व्यक्तिगत जरूरतों के लिए दिया जाता है, जैसे कि शादी, पढ़ाई, या किसी आपातकालीन खर्च के लिए। यह अनसिक्योर्ड लोन होता है, मतलब इसमें गिरवी रखने के लिए कोई संपत्ति नहीं चाहिए।
  2. होम लोन: यह लोन घर खरीदने, बनवाने या रेनोवेट करने के लिए दिया जाता है। इसमें घर को गिरवी रखा जाता है और बैंक के पास उस पर कब्जा का हक होता है जब तक लोन पूरी तरह से चुकाया न जाए।
  3. कार लोन: यह लोन गाड़ी खरीदने के लिए दिया जाता है और इसमें गाड़ी को गिरवी रखा जाता है जब तक लोन का पूरा भुगतान नहीं होता।
  4. बिज़नेस लोन: यह लोन व्यवसाय या बिज़नेस की ज़रूरतों के लिए दिया जाता है, जैसे कि बिज़नेस का विस्तार करना, नई मशीन खरीदना, या वर्किंग कैपिटल का इंतजाम करना।
  5. एजुकेशन लोन: यह लोन छात्रों के पढ़ाई और उनके शिक्षा संबंधी खर्च के लिए दिया जाता है।

बैंक लोन देने से अपना मुनाफा कमाता है क्योंकि जो ब्याज लोन पर लगता है, वह बैंक की आमदनी का एक मुख्य स्रोत होता है। बैंक अपने जमा किए गए डिपॉजिट्स का कुछ हिस्सा लोन के रूप में प्रदान करता है, जो अर्थव्यवस्था में लिक्विडिटी और व्यवसाय को बढ़ावा देने में मदद करता है।

EMI – Equated Monthly Installment

EMI का मतलब है “Equated Monthly Installment” यानी एक बराबर की महीने की किस्त। जब कोई व्यक्ति या संस्था बैंक से लोन लेता है, तो उस लोन की रकम को चुकाने के लिए व्यक्ति को महीने के हिसाब से एक निर्धारित रकम बैंक को वापस करनी होती है। इसी किस्त को EMI कहा जाता है।

EMI में दो मुख्य भाग होते हैं:

1.   Principal Amount: यह लोन की असल रकम होती है जो बैंक से ली गई थी।

2.   Interest Amount: यह प्रिंसिपल अमाउंट पर लगने वाला ब्याज होता है।

हर महीने की EMI में कुछ हिस्सा असल रकम का होता है और कुछ हिस्सा ब्याज का होता है। लोन की शुरुआत में EMI का ज्यादा हिस्सा ब्याज का होता है और बाद में असल रकम का हिस्सा बढ़ता है।

EMI का कैलकुलेशन लोन की रकम (प्रिंसिपल), ब्याज दर (interest rate), और लोन की अवधि (tenure) पर निर्भर करता है। EMI का फायदा यह है कि लोन लेने वाले व्यक्ति या संस्था को अपने खर्च को मैनेज करने में आसानी होती है, क्योंकि उन्हें एक निर्धारित रकम महीने में देनी होती है।

INTEREST

बैंक के लिए “इंटरेस्ट” यानी “ब्याज” वो रकम होती है जो बैंक अपने ग्राहकों से उधार दिए गए पैसों पर वसूलता है, या फिर वो रकम जो बैंक अपने कस्टमर्स को उनके डिपॉजिट्स पर देता है। ब्याज बैंक की आमदनी और खर्च, दोनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बैंक के लिए ब्याज दो तरह का होता है:

  1. लेंडिंग इंटरेस्ट (जो ब्याज बैंक कमाता है): जब बैंक किसी व्यक्ति या संस्था को लोन देता है, तो उस लोन पर एक निर्धारित ब्याज दर लगाई जाती है। यह lending interest बैंक की कमाई का एक मुख्य स्रोत है। इस तरह के इंटरेस्ट से बैंक अपने ऑपरेशंस और मुनाफे को बढ़ा सकता है।
  2. डिपॉजिट इंटरेस्ट (जो ब्याज बैंक देता है): बैंक जब किसी ग्राहक से पैसे डिपॉजिट करवाता है, जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) या सेविंग्स अकाउंट, तो उस पर भी एक छोटा ब्याज देता है। इसका उदाहरण है सेविंग्स अकाउंट में बैलेंस पर मिलने वाला ब्याज। deposit interest देना बैंक के लिए एक खर्च है, लेकिन इससे वह अपने पास नया कैपिटल जमा कर सकता है जो आगे लोन और इन्वेस्टमेंट्स के रूप में उपयोग किया जाता है।

बैंक ब्याज से अपनी कमाई और खर्च को बैलेंस करता है और इसी से बैंक का ऑपरेटिंग मॉडल बनता है।

NBFC – Non-Banking Financial Company

NBFC का मतलब है Non-Banking Financial Company” यानी ऐसी फाइनेंशियल कंपनी जो बैंकिंग सर्विसेज जैसी लगभग सभी सुविधाएं देती है, लेकिन वो एक बैंक नहीं होती। NBFC, Reserve Bank of India (RBI) के नियम और निर्देशों के अनुसार काम करती हैं, लेकिन इनके पास कुछ बैंकिंग एक्टिविटीज़ करने का अधिकार नहीं होता, जैसे कि डिमांड डिपॉजिट्स एक्सेप्ट करना (सेविंग्स या करंट अकाउंट)।

NBFC कई तरह की फाइनेंशियल सर्विसेज़ प्रदान करती हैं, जैसे:

  1. लोन और एडवांस: NBFC लोगों और व्यवसायों को लोन और एडवांस प्रदान करती हैं, जैसे पर्सनल लोन, वाहन लोन, और बिज़नेस लोन।
  2. इन्वेस्टमेंट और वेल्थ मैनेजमेंट: कुछ NBFC इन्वेस्टमेंट और वेल्थ मैनेजमेंट सर्विसेज़ प्रदान करती हैं, जो कस्टमर्स को उनके पैसों का बेहतर मैनेजमेंट और ग्रोथ में मदद करती हैं।
  3. एसेट फाइनेंसिंग: ये NBFCs गाड़ी, मशीनरी, या अन्य एसेट्स के लिए फाइनेंस प्रदान करती हैं।
  4. माइक्रोफाइनेंस: कुछ NBFCs माइक्रोफाइनेंस प्रदान करती हैं जो उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है जो फॉर्मल बैंकिंग से दूर हैं।

NBFC और बैंक्स में कुछ मुख्य अंतर हैं:

  • NBFCs डिमांड डिपॉजिट्स नहीं ले सकती हैं, जबकि बैंक्स ये सुविधा देते हैं।
  • NBFCs अपना ट्रांजैक्शन RBI के ‘पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम’ का इस्तेमाल करके नहीं कर सकती हैं।
  • NBFCs को डायरेक्ट RBI के गाइडलाइन्स पर काम करना पड़ता है लेकिन बैंक्स पर स्ट्रिक्टर रूल्स लागू होते हैं।

NBFCs का मकसद ऐसे लोगों और व्यवसायों को फाइनेंशियल सुविधा देना है जो बैंक से लोन या क्रेडिट लेने में असमर्थ हैं या फॉर्मल बैंकिंग सर्विसेज़ तक पहुंच नहीं रखते।

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